Chapter 02 Gol notes
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06/11/2024Chapter Notes: पहली बूँद
कविता का परिचय
प्रस्तुत कविता ‘पहली बूँद’ कवि गोपालकृष्ण कौल जी के द्वारा रचित है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने वर्षा के सौंदर्य और महत्त्व पर प्रकाश डाला है। जब आकाश से वर्षा की मोती रूपी बूँदें धरा पर गिरती हैं तो सूखी धरा में नव-जीवन आ जाता है । तत्पश्चात् चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली छा जाती है।
कविता का सारांश

पहला पद
वह पावस का प्रथम दिवस जब,
पहली बूँद धरा पर आई,
अंकुर फूट पड़ा धरती से,
नव जीवन की ले अँगड़ाई |
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि गोपाल कृष्ण कौल जी के द्वारा रचित कविता पहली बूँद से उद्धृत हैं | यहाँ वर्षा ऋतु के आगमन पर धरती में आए परिवर्तन के सौंदर्य का वर्णन किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा ऋतु के आगमन से चारों तरफ़ आनंद रूपी हरियाली फैली है | वर्षा की पहली बूँद जब धरती पर आती है तो धरती के अंदर छिपे बीज में से अंकुर फूटकर बाहर निकल आता है | मानो वह बीज नया जीवन पाकर अँगड़ाई लेकर जाग गया हो |
दूसरा पद
धरती के सूखे अधरों पर,
गिरी बूँद अमृत-सी आकर,
वसुंधरा की रोमावलि-सी,
हरी दूब, पुलकी मुसकाई |
पहली बूँद धरा पर आई |
आगे कवि कहते हैं कि धरती के सूखे होंठों पर बारिश की बूँद अमृत के समान गिरी, मानो वर्षा होने से बेजान और सूखी पड़ी धरती को नवीन जीवन ही मिल गया हो | धरती रूपी सुंदरी के रोमों की पंक्ति की तरह हरी घास भी मुसकाने लगी तथा ख़ुशियों से भर उठी | पहली बूँद कुछ इस तरह धरती पर आई, जिसका ख़ूबसूरत एहसास और परिणाम धरती को मिला |
तीसरा पद
आसमान में उड़ता सागर,
लगा बिजलियों के स्वर्णिम पर,
बजा नगाड़े जगा रहे हैं,
बादल धरती की तरुणाई |
पहली बूँद धरा पर आई |
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि गोपाल कृष्ण कौल जी के द्वारा रचित कविता पहली बूँद से उद्धृत हैं | यहाँ वर्षा ऋतु के आगमन पर धरती में आए परिवर्तन के सौंदर्य का वर्णन किया गया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि आसमान में जल रूपी बादलों में बिजली चमक रही है | जैसे सागर बिजलियों के सुनहरे पंख लगाकर आसमान में उड़ रहा हो | बादलों की गर्जन सुनकर ऐसा आभास होता है कि वे नगाड़े बजा-बजाकर धरती की यौवनता को जगा रहे हैं |
चौथा पद
नीले नयनों-सा यह अंबर,
काली-पुतली से ये जलधर,
करुणा-विगलित अश्रु बहाकर,
धरती की चिर प्यास बुझाई |
बूढ़ी धरती शस्य-श्यामला,
बनने को फिर से ललचाई |
पहली बूँद धरा पर आई |
आगे कवि कहते हैं कि नीला आसमान नीली आँखों के समान है और काले बादल उन नीली-नीली आँखों की काली पुतली के समान है | मानो बादल धरती के दु:खों से दुःखित होकर वर्षा रूपी आँसू बहा रहा हो | इस प्रकार धरती की प्यास बुझ जाती है | वर्षा का प्रेम पाकर धरती के मन में फिर से हरा-भरा होने की इच्छा जाग उठी है | पहली बूँद कुछ इस तरह धरती पर आई, जिसका ख़ूबसूरत एहसास और परिणाम धरती को मिला |
शब्दार्थ
- प्रथम दिवस – पहला दिन
- बूँद – वर्षा की छोटी बूंद
- धरा – धरती
- अंकुर फूटना – पौधे का उगना
- अंगड़ाई – खिंचाव के साथ जागना
- अधर – होंठ
- अमृत – अमरता देने वाला रस
- वसुंधरा – पृथ्वी
- रोमांच – उत्तेजना, खुशी
- पुलकना – खुश होना
- नगाड़ा – बड़ा ढोल
- अंबर – आकाश
- जलधर – बादल
- करुणा – दया
- अश्रु – आँसू
- शस्य-श्यामला – फसलों से भरी हुई हरी-भरी धरती
- ललचाना – आकांक्षा रखना
निष्कर्ष
गोपालकृष्ण कौल द्वारा लिखित “पहली बूँद” कविता प्रकृति और वर्षा ऋतु की सुंदरता को अद्वितीय रूप से प्रस्तुत करती है। यह कविता धरती की प्यास, आकाश के बदलते रंग, और पहली बूँद के गिरने के महत्व को गहराई से उजागर करती है। इस कविता में प्रकृति के सौंदर्य, वर्षा की महत्ता, और धरती के हर्षोल्लास को सुंदर तरीके से चित्रित किया गया है।