Chapter 08 satriya aur tihoo nrty notes
06/11/2024Chapter 10 pareeksha notes
06/11/2024Chapter Notes: मैया मैं नहिं माखन खायो
परिचय
सूरदास रचित ‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ एक प्रसिद्ध हिंदी कविता है, जो भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की मधुर घटनाओं पर आधारित है। यह कविता एक मासूम और निर्दोष बालक कृष्ण की छवि प्रस्तुत करती है, जो अपनी माँ यशोदा को माखन चोरी का इल्जाम खंडन करते हुए नजर आते हैं। इस कविता में श्रीकृष्ण और यशोदा के बीच के स्नेहिल रिश्ते को बखूबी दर्शाया गया है।
कविता का सार
‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ कविता में सूरदास जी ने बालक कृष्ण और उनकी माँ यशोदा के बीच हुए संवाद को बहुत ही सरल और सुंदर शब्दों में वर्णित किया है। कविता की शुरुआत में कृष्ण अपनी माँ से कहते हैं कि उन्होंने माखन नहीं खाया है। वे बताते हैं कि सुबह से ही वे गैयन (गायों) के पीछे मधुबन (वन) में चले गए थे और वहां चार पहर तक बंसीवट (वृक्ष) के पास भटकते रहे। शाम होने पर वे घर लौटे।
कृष्ण कहते हैं कि वे छोटे बच्चे हैं, उनकी बाहें छोटी हैं, और वे छींके से माखन नहीं निकाल सकते। ग्वाल-बाल (गाय चराने वाले बालक) उनके विरुद्ध हैं और जबरदस्ती उनके मुख पर माखन लगा दिया। कृष्ण अपनी माँ को यह भी कहते हैं कि वह दिल से बहुत भोली हैं और दूसरों की बातों पर जल्दी विश्वास कर लेती हैं।
अंत में, कृष्ण अपनी माँ को उनकी कमरिया (दुपट्टा) देते हुए कहते हैं कि उन्होंने उन्हें बहुत नचाया है। यशोदा, सूरदास के अनुसार, इस मासूमियत भरे उत्तर को सुनकर हंस पड़ती हैं और कृष्ण को अपने गले से लगा लेती हैं।

कविता की मुख्य घटनाएं:
कृष्ण का माखन चोरी का आरोप खंडन।
गायों के पीछे वन जाने का विवरण।
ग्वाल-बाल द्वारा जबरदस्ती मुख पर माखन लगाना।
यशोदा की भोलेपन पर टिप्पणी।
यशोदा का कृष्ण को गले लगाना।
कविता से शिक्षा
सच्चाई और मासूमियत की शक्ति।
माता-पिता और बच्चों के बीच का स्नेहपूर्ण रिश्ता।
किसी भी परिस्थिति में सच्चाई का साथ न छोड़ना।
निर्दोषता की अहमियत और मूल्य।
शब्दावली
- माखन: मक्खन
- गैयन: गायें
- मधुबन: वन या जंगल
- बंसीवट: वृक्ष
- बैर: विरोधी
- छीको: छींका, वह स्थान जहाँ माखन रखा जाता है
- पतियायो: विश्वास करना
- बिहँसि: हँसना
निष्कर्ष
‘मैया मैं नहिं माखन खायो’ कविता भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की मासूमियत और सच्चाई को उजागर करती है। सूरदास जी ने इस कविता के माध्यम से यह संदेश दिया है कि सच्चाई और सरलता हमेशा दिल को छूती है और यही वास्तविकता है। कृष्ण और यशोदा के इस प्रेमपूर्ण संवाद से हमें यह सीख मिलती है कि माता-पिता और बच्चों के बीच का स्नेह कभी नहीं टूटना चाहिए और हमें सच्चाई का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।